इन पांच कारणों से झारखंड में फेल हुआ बीजेपी का मिशन 65

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झारखंड चुनाव के नतीजे सत्ता से बीजेपी के विदाई के संकेत दे रहे हैं. रुझानों में महागठबंधन को जनता का शानदार समर्थन मिलता दिख रहा है. चुनाव से पहले मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अबकी बार 65 पार का नारा दिया था, लेकिन इस चुनाव में सीएम का यह नारा ध्वस्त होता दिख रहा है. ताजा रुझानों में बीजेपी 65 तो दूर, इसके आधे के करीब भी नहीं दिख रही है.

झारखंड चुनाव में बीजेपी के इस कमजोर प्रदर्शन का अब पोस्टमार्टम शुरू हो गया है. पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह और रघुवर दास चुनाव प्रचार के दौरान ‘डबल इंजन’ की सरकार बनाने के लिए बार-बार अपील करते नजर आए. डबल इंजन की सरकार यानी केंद्र और राज्य, दोनों ही जगह, बीजेपी का शासन. हालांकि, अब रुझानों से यह स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि झारखंड में डबल इंजन की सरकार डिरेल हो गई है. अगर झारखंड में बीजेपी की हार पर सरसरी निगाह डालें तो ये मुख्य कारण नजर आते हैं.

रघुवर दास से गहरी नाराजगी, गैर आदिवासी चेहरा खारिज
2014 के विधानसभा सभा चुनाव में बीजेपी ने 37 सीटें जीती थीं। रघुवर दास ने भले ही पांच साल तक सीएम रहने का गौरव हासिल किया हो, लेकिन वे अपने दम पर बीजेपी को दोबारा सत्ता में नहीं ला सके, वो भी तब जब उन्हें केंद्र की मजबूत सरकार का साथ हासिल था. दरअसल पिछले पांच सालों में झारखंड में कई ऐसी घटनाएं हुई, जिससे लोग सीएम से नाराज थे. 15 नवंबर 2018 को झारखंड के स्थापना दिवस के मौके पर प्रदर्शन कर रहे पारा शिक्षकों पर लाठी चार्ज हुआ था. इस लाठी चार्ज में कई शिक्षक घायल हुए थे. एक शिक्षक की मौत भी हो गई थी. विरोध में शिक्षक हड़ताल पर रहे. इस घटना से रघुवर दास की छवि को गहरा धक्का लगा था. झारखंड में करीब 70 से 80 हजार पारा शिक्षक हैं.

इसी साल सितंबर महीने में भी आंगनबाड़ी सेविका और सहायिकाओं पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया था. इसका राज्य में पुरजोर विरोध हुआ था. हेमंत सोरेन ने विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान लगातार इस मुद्दे को उठाया था. चुनाव के रुझान संकेत देते हैं कि झारखंड की जनता ने गैर आदिवासी चेहरे को खारिज कर दिया. रघुवर सरकार की ओर से काश्तकारी कानून (CNT एक्ट) में बदलाव जैसे फैसलों ने उनकी छवि की चोट पहुंचाया. विपक्ष ने आदिवासियों के लिए जल, जंगल और जमीन का मुद्दा जोर-शोर से उठाया. विपक्ष के इन अभियानों से झारखंड में एक जनमत बना कि गैर आदिवासी सीएम झारखंड के आदिवासियों के लिए कल्याण की बात नहीं कर सकता है.

राष्ट्रीय के बजाय स्थानीय मुद्दों का जोर
सरकारी नौकरियों में स्थानीय की बहाली को लेकर पूरे पांच साल तक झारखंड में हंगामा होता रहा. राज्य सरकार ने हाई स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति की तो इस दौरान दूसरे राज्यों के उम्मीदवारों को नौकरी मिलने का मामला विपक्ष ने जमकर उछाला. इस मुद्दे को लेकर राज्य के युवाओं में गहरा रोष देखा गया. झारखंड में पिछले पांच साल में राज्य लोकसेवा आयोग की एक भी परीक्षा नहीं हो पाई है, इसे लेकर राज्य के पढ़े लिखे युवाओं में असंतोष है. जल-जंगल और जमीन के मुद्दे पर रघुवर सरकार को लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी.

AJSU और बीजेपी में ऐन मौके पर अलगाव
झारखंड में बीजेपी और ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (AJSU) पांच साल तक सत्ता में रही. लेकिन जब चुनाव लड़ने का वक्त आया तो दोनों के रास्ते जुदा हो गए. पिछले चुनाव में आजसू ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और 8 विधानसभा सीटों में से 5 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इस बार आजसू ने बीजेपी से अपनी सीटों की डिमांड बढ़ा दी थी, जिसके चलते दोनों की राहें अलग-अलग हो गईं. बीजेपी भी ओवर कॉन्फिडेंस में थी और उसने AJSU को मनाने की कोशिश नहीं की. इस बार आजसू 52 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. लिहाजा कई सीटों पर आजसू बीजेपी का वोट काट रही है. AJSU ही नहीं एनडीए के अहम सहयोगी रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने भी झारखंड में अलग चुनाव लड़ा. इससे वोटों का बंटवारा हुआ.

सरयू राय की बगावत से गलत संदेश
सरयू राय की गिनती ईमानदार नेताओं में होती है. सरयू राय ने बिहार और झारखंड में कई घोटालों का पर्दाफाश किया है. चारा घोटाले को जनता के सामने लाकर उसकी अदालती जांच को अंजाम तक पहुंचाने में सरयू राय की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. इसके अलावा सरयू राय ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को जेल भिजवाने में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी. हालांकि मुख्यमंत्री रघुवर दास से उनके रिश्ते कड़वाहट भर ही रहे. नतीजा ये हुआ कि रघुवर ने इस बात की पूरी कोशिश की कि उन्हें विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिले. सरयू राय जमशेदपुर पश्चिम सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. सरयू राय को जब टिकट नहीं मिला तो वे सीएम रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्व से ही ताल ठोक बैठे. सरयू राय की बगावत से जनता में ये संदेश गया कि बीजेपी एक ऐसे नेता को टिकट नहीं दे रही है जो करप्शन के खिलाफ मुहिम चलाता रहा है. राय जनता में एक ऐसे नेता में उभरे जिन्हें उनकी ईमानदारी के लिए दंडित किया गया.