इन आयुर्वेद उपचारों को अपनाकर बढ़ाएं प्रजनन शक्ति

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गर्भावस्था एक ऐसा समय होता है, जब मां को अपनी देखभाल अच्छे ढंग से करनी चाहिए, क्योंकि उनके अच्छे लालन-पोषण से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं। आयुर्वेद में ऐसे कई उपचार हैं, जिन्हे करने से गर्भावस्था में कोई दिक्कत नहीं आती है। आइए जानते हैं कौन-से हैं ये उपचार।

पूर्वाकर्मा 
प्री-डिटॉक्स प्रक्रिया के दौरान शरीर के अंदरूनी और बाहरी गंदगी को पसीने के रूप में निकाला जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को ऑलिटियन कहा जाता है। इसमें गर्भवती महिला को तीन से पांच दिन तक खाली पेट घी खिलाया जाता है, जिससे शरीर की आतंरिक गंदगी साफ हो जाती है। इसके बाद गर्भवती महिला के शरीर को तीन दिनों तक भाप से मालिश की जाती है। (इस उपचार के बारे में जानने के लिए किसी विशेषज्ञ से जानकारी लें। यह केवल आपकी जानकारी बढ़ाने के लिए है।)

मुख्य कर्म (विरेचन)
मुख्य कर्म विरेचन में जड़ी बूटियों को खाना पड़ता है ,जिसके कुछ घंटो बाद आपको बार-बार शौच जाना पड़ेगा। इस प्रक्रिया को चार से छह बार दोहराया जाता है। ऐसा करने से गर्भाशय की सफाई हो जाती है।

सात्विक भोजन को अपनाएं
गर्भवती महिला के लिए यह आवश्यक है कि वह सात्विक भोजन ही खाए। सात्विक भोजन शुद्ध और ताजा होने के कारण गर्भवती महिला के लिए काफी लाभदायक माना गया है। गर्भवती महिला को अपने आहार में आसानी से पचने वाले पदार्थों का ही सेवन करना चाहिए। यह आहार मां और बच्चे दोनों के लिए लाभदायक होता है। सात्विक आहार का सेवन करने से मन में पवित्रता और स्पष्ट गुण आने लगते हैं।

तेल मालिश करें
गर्भावस्था के दौरान खुद का पोषण करना बेहद जरूरी है। तेल मालिश करके शरीर को आराम मिलता है और शरीर में गर्मी पैदा होती है। इसके अतिरिक्त तेल की मालिश करने से शरीर थकान और तनाव मुक्त होने लगता है।

आहार में वसा की पर्याप्त मात्रा लें
शरीर को स्वस्थ वसा की जरूरत होती है। खासतौर पर गर्भावस्था के दौरान महिला को अपने आहार में स्वस्थ वसा का सेवन करना चाहिए। यह आवश्यक है कि गर्भावस्था के दौरान महिला पर्याप्त मात्रा में वसा का सेवन करें।