राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार जो कि आज महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बने हैं, उनके सामने दो ही विकल्प थे। एक, वे भाजपा को समर्थन देकर डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठ जाएं और दूसरा, यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो आपराधिक मामलों के अंतर्गत कानूनी शिकंजे में फंसने के लिए तैयार रहें।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के एक अधिकारी का दावा है कि अजित पवार, शरद पवार और उनके कई सहयोगियों के खिलाफ धन शोधन के जो मामले दर्ज हैं, उनके तहत इन सभी को कभी भी पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता था।
ईडी ने सितंबर में एनसीपी प्रमुख शरद पवार और उनके भतीजे एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार के खिलाफ 25000 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप में धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) का मामला दर्ज किया था। यह मामला महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक से संबंधित है।
इधर, कांग्रेसी नेता दिग्विजय का आरोप है कि भाजपा सरकार ने ईडी और सीबीआई की मदद से महाराष्ट्र में सरकार बनाई है। बता दें कि ईडी ने यह मामला मुंबई पुलिस की प्राथमिकी के आधार पर दर्ज किया था। मुंबई पुलिस की एफआईआर में बैंक के तत्कालीन निदेशकों, राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार और सहकारी बैंक के 70 पूर्व पदाधिकारियों का नाम शामिल था।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री एवं एनसीपी प्रमुख शरद पवार को ईडी ने पुलिस एफआईआर के आधार पर नामित किया है। यह मामला महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले दर्ज किया गया था।
..तो क्या वाकई ऐसा हुआ
सूत्र बताते हैं कि इस मामले में आरोपियों को पूछताछ के लिए बुलाया जाना था। इस बाबत कई बार नोटिस तैयार किया गया, लेकिन अंतिम क्षणों में उसे रोक लिया जाता। इसकी वजह कुछ कानूनी पहलू बताए गए, लेकिन सूत्रों की मानें तो यह सब कथित तौर पर केंद्र के इशारे पर हो रहा था।
ईडी ने जो मामला दर्ज किया था, उसके अन्य आरोपियों में दिलीप राव देशमुख, इशरलाल जैन, जयंत पाटिल, शिवाजी राव, आनंद राव अडसुल, राजेंद्र शिंगाने और मदन पाटिल शामिल हैं। खास बात है कि मुंबई पुलिस ने हाईकोर्ट के निर्देश पर एमएससीबी घोटाला मामले में अजित पवार और अन्य पदाधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। 2007 और 2011 के बीच कथित रूप से एमएससीबी को 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान पहुंचाने की बात भी सामने आई थी।
