जिन बेटों को राम-लक्ष्मण समझती थी, उन्होंने घर से निकाला; कहते हैं यमुना में कूद जाओ

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(www.arya-tv.com) आगरा के पॉश इलाके कमलानगर की रहने वाली विद्या देवी रामलाल वृद्धाश्रम में रहती हैं। ऐसा नहीं है कि उनके परिवार के लोग आर्थिक कमजोर हैं। बल्कि उनके चारों बेटे करोड़पति हैं। रिश्ते की बहन के साथ आश्रम में पहुंची विद्या देवी कहती है कि मेरे करोड़पति बेटों की आलीशान कोठियों में मेरे लिए को जगह नहीं है। मेरे एक बेटे का लोहे का कारखाना, दूसरे का ट्रैक्टर के स्पेयर पार्ट का बिजनेस है। लेकिन 86 साल की उम्र में मुझे बेघर कर दिया।

पति की मौत के बाद मेरा घर बेचा, मुझे बाहर निकाला
विद्या देवी ने बताया कि 13 साल पहले मेरे पति का निधन हो गया। जब तक पति जिंदा थे, सब ठीक रहा। मेरे पति का लोहे का व्यापार था। बेटे भी व्यापार में हाथ बंटाते थे। मिल जुलकर रहते थे। उस समय तक लगता था कि भगवान ने मुझे राम-लक्ष्मण, भरत- शत्रुघ्न जैसी संतान दी है। सबको अच्छी शिक्षा दिलवाकर अपने पैरों पर खड़ा कराया। मगर, जैसे ही मेरे पति का निधन हुआ। सब कुछ बदल गया। बडे़ बेटे ने व्यापार अपने हाथ में ले लिया। वो जिस घर में रहती थीं, उसे बडे़ बेटे ने गुपचुप तरीके से बेच दिया। रुपए अपने पास रख लिए। मुझे मारपीट कर घर से निकाल दिया।

दूसरे बेटे ने घर से निकाल दिया
आंखों में आंसू लाते हुए विद्या देवी कहती है कि जब बडे़ बेटे ने निकाल दिया तो मैं दूसरे बेटे के घर पर गईं। उसने कुछ दिनों तक मुझको अपने साथ रखा। मगर, नाती को परेशानी होने लगी। उसने कहा कि कहीं और अपना ठिकाना देख लें। जब मैं कहती थीं कि इस हाल में कहां जाऊंगी। तो कहते थे कि कहीं भी जाओ। यमुना में कूद जाओ या कहीं चली जाओ।

इसके बाद मैं परेशान होकर तीसरे बेटे के घर गईं। उसने कहा कि एक घंटे भी अपने घर नहीं रख पाऊंगा। चौथे बेटों को भी मां पर दया नहीं आई, उसने भी मां को अपने घर में जगह नहीं दी।

पंचायत हुई, 15-15 दिन रखने पर हुई सहमति
विद्या देवी कहती हैं कि एक बार मेरे हाथ की हड्‌डी टूट गई थी। तब रिश्तेदारों ने बेटों को समझाया। पंचायत हुई, इसके बाद बडे़ और छोटे बेटे ने 15-15 दिन अपने साथ रखने की हामी भरी। मगर, ये व्यवस्था भी लंबी नहीं चली। उस समय उनके पास चार तोले की सोने की चूड़ियां थीं। छोटे बेटे ने चूड़ी मांगी थी, उन्होंने देने से मना कर दिया था। बेटा कहता था कि चूड़ी दे दो, इसे बेचकर इलाज कराऊंगा। अगर मर गई थी अंतिम संस्कार के लिए भी रुपए की जरूरत होगी। जब उन्होंने चूड़ी नहीं दी तो हाथ ठीक होते ही उन्हें निकाल दिया गया। उन्हें दवाई भी नहीं दिलाई जाती थी।

बहू कहती थी ‘आतंकवादी’
विद्या देवी बताती हैं कि बहू और नाती भी उन्हें प्यार नहीं करते। बहू तो उन्हें आतंकवादी कहती थीं । विद्या देवी पिछले 10 साल से इधर-उधर भटक रही हैं। वो जयपुर में अपनी बेटी के पास भी रहीं। फिर वो वृंदावन आश्रम चली गईं। अब वो रामलाल वृद्धाश्रम आई हैं। बूढ़ी मां रोते हुए कहती है कि अब यही मेरा परिवार है। यहां पर रहने वाले लड़के मेरे बेटे और बुजुर्ग महिलाएं मेरी बहन है। दिल में दर्द लिए इस बूढ़ी मां के जुबान से बस यही शब्द निकलते हैं कि अगर मैं मर भी जाऊं तो मेरे बेटों को इसकी खबर भी नहीं दी जाए।