लालू रिटर्न इन बिहार:पिछड़ी जाति के विधायकों को एकजुट करने और सियासी तिकड़म में माहिर हैं लालू प्रसाद

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(www.arya-tv.com)RJD सुप्रीमो लालू यादव जमानत पर बाहर आ गए हैं। वो कभी भी पटना आ सकते हैं। इससे बिहार की राजनीति में गरमाहट है। वहीं, लालू यादव के तिकड़म और पिछड़ी जाति के विधायकों को गोलबंद करने की क्षमता से अटकलबाजी भी शुरू हो गई है। इसे हवा नीतीश सरकार की सहयोगी हम और VIP पार्टी के रवैये ने और दी है। वहीं, माना जा रहा है कि लालू के तिकड़म से वाकिफ जदयू और भाजपा अंदर ही अंदर तैयारी में जुट गई है।

राजनीतिक चाल-1: आडवाणी का रथ रोका, भाजपा नंबर 1 पार्टी बनने से चुक गई

1990 का दौर था। उस समय भाजपा राम मंदिर के मुद्दे पर देशभर में आक्रामक थी। समर्थन जुटाने के लिए भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी रथ यात्रा पर निकल पड़े। बिहार में लालू यादव उस समय मुख्यमंत्री थे। किसी राज्य सरकार ने आडवाणी को रोकने की हिम्मत नहीं की, लेकिन बिहार के सीमा में आते ही लालू यादव ने उनके रथ को रोक दिया। इससे उस समय की पूरी राजनीति ही बदल गई। भाजपा लोकसभा चुनाव में नंबर एक पार्टी बनने से चूक गई।

राजनीतिक चाल-2: वाजपेयी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया

लालू प्रसाद पर ‘ गोपालगंज टू रायसीना माय पॉलिटिकल जर्नी.’ किताब लिखने वाले नलिन वर्मा कहते हैं कि लालू प्रसाद 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने और 2000 तक बड़े गेम चेंजर की भूमिका में रहे। वे इंद्रकुमार गुजराल और एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने वाले नेता रहे। वाजपेयी दुबारा प्रधानमंत्री नहीं बन सके तो इसमें लालू की राजनीति ने बड़ी भूमिका निभाई थी। लालू की मंडल की राजनीति का जवाब BJP ने कमंडल से दिया, लेकिन लालू की राजनीति ध्वस्त नहीं हो पाई।

राजनीतिक चाल-3: कांग्रेस से हाथ मिलाकर भाजपा को केंद्र में रोक दिया

1999 के बाद कांग्रेस केंद्र में कमजोर हो रही थी। पार्टी में सोनिया गांधी के नाम पर भी विरोध हो रहा था। तब सोनिया गांधी को लालू ने समर्थन दिया और 2004 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन कर बिहार में करीब दो तिहाई सीट जीत ली। इसका असर यह हुआ कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार दोबारा वापसी नहीं कर पाई। इसके बाद लालू यादव रेलमंत्री बने।

राजनीतिक चाल-4: 2015 में कट्‌टर विरोधी नीतीश से हाथ मिलाकर कमल को मुरझा दिया

2014 लोकसभा चुनाव बिहार में नीतीश कुमार ने अकेला लड़ा, लेकिन प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को CM की गद्दी पर बैठा दिया। थोड़े दिन बाद मांझी नीतीश से ही खफा हो गए। उस समय मांझी को बैक डोर से भाजपा समर्थन देने लगी। तब नीतीश को अपनी गलती का एहसास हुआ। बाद में लालू यादव के सहयोग से ही मांझी को सत्ता से बेदखल किया जा सका। फिर 2015 विधानसभा चुनाव में लालू ने नीतीश कुमार से हाथ मिलाया और बिहार में भाजपा के विजय रथ को रोक दिया।