(www.arya-tv.com) 17 फरवरी को औद्योगिक देशों के समुह जी-7 की बैठक में सबकी नजर भारत पर रहेगी। जी-7 की अध्यक्षता कर रहे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भारत, ऑस्टेलिया और दक्षिण कोरिया को इस शिखर सम्मेलन में एक अतिथि देश के लिए बुलाया है। भारत के प्रति दुनिया के विकसित मुल्कों की दिलचस्पी यूं ही नहीं है। भारत की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था और दुनिया में चीन की बढ़ती आक्रामकता ने सबकी निगाहें उस पर टिकी है। पिछले वर्ष कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर की अध्यक्षता वाले थिक टैंक ने ब्रिटेन से कहा था कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन को टक्कर देने के लिए भारत का सहयोग करना चाहिए। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत की बड़ी भूमिका निभानी चाहिए। इसके बाद से भारत को लेकर अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों के नजरिए में भारी बदलाव आया है।
ब्रिटेन पीएम के भारत दौरे का निहितार्थ
ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से निकलने के बाद बोरिस जॉनसन ने पहला दौरा भारत का किया था। उस वक्त प्रधानमंत्री जॉनसन के ऑफिस की ओर से कहा गया था कि 2021 में ब्रिटेन जी-7 की मेजबानी कर रहा है। पीएम ऑफिस की ओर से यह भी कहा गया कि जॉनसन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जी-7 के लिए आमंत्रित किया गया है। ब्रिटेन प्रधानमंत्री का यह भारत दौरा इंडो पैसिफिक क्षेत्र में उनकी दिलचस्पी को दर्शाता है। इसमें आगे कहा गया था कि प्रधानमंत्री जॉनसन का लक्ष्य उन मुल्कों के साथ सहयोग को बढ़ाना है, जो लोकतांत्रिक है। उनके हित आपस में जुड़े हुए हैं और उनकी चुनौतियां भी समान हैं। ब्रिटन का यह इशारा न केवल व्यापारिक बल्कि सामरिक क्षेत्र की ओर भी था।
प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि जी-7 की एकजुटता कहीं न कहीं चीन के लिए एक संदेश है। खासकर इंडो-पैसिफिक और दक्षिण चीन सागर में चीन की चुनौती को देखते हुए यह काफी अहम है। इंडो पैसिफिक क्षेत्र न केवल व्यापारिक दृष्टि से बल्कि सामरिक रूप से काफी अहम है।
दुनिया भर की लगभग दो तिहाई आबादी इसी इलाके में बसी है। दुनिया का आधे से ज्यादा व्यापार भी इसी क्षेत्र से होकर गुजरता है। भारत और जापान पर इसका सीधा प्रभाव है। दोनों देश इन सागरों पर बसे हैं। यूरोपीय देशों के भी यहां हित जुड़े हैं।
भारत, जापान और फ्रांस के लिए इंडो पैसिफिक क्षेत्र किसी सुदूर क्षेत्र की सामरिक रणनीति का मसला नहीं बल्कि निकटता का ममला है। फ्रांस अधिकृति कई द्वीप इंडो पैसिफिक क्षेत्र में आते हैं। प्रो. पंत का कहना है कि कोविड-19 और गिरती अर्थव्यवस्था की मार झेल रहा अमेरिका शायद इंडो पैसिफिक क्षेत्र में पूरा ध्यान केंद्रीत कर पाए। उधर, चीन लगातार प्रशांत और हिंद महासागर में अपनी ताकत का इजाफा कर रहा है। दक्षिण चीन सागर पर भी वह दबदबा बनाए जा रहा है। इसको लेकर उसका आए दिन फिलीपींस, वियतनाम और इंडोनेशिया से टकराव की स्थिति उत्पन्न हो रही है। इस क्षेत्र में चीन से निपटना एक बड़ी चुनौती। ऐसे में जी-7 की एकजुटता चीन के लिए एक कड़ा संदेश होगा।
जी-7 और उसकी चुनौतियां व्यापारिक और नई सामरिक चुनौतियों के बावजूद जी-7 समूह के सदस्यों के बीच कई असहमतियां भी हैं। इसके पूर्व के जी-7 की बैठक में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अन्य सदस्य देशों के बीच मतभेद उभर कर आए थे। अमेरिका का आरोप था कि दूसरे देश अमेरिका पर भारी आयात शुल्क लगा रहे हैं। इसके अलावा पर्यावरण के मुद्दे पर भी सदस्य देशों के बीच गहरे मतभेद उभरे थे। इसके अलावा इस समूह की निंदा इस बात के लिए भी होती रही है कि बैठक में वैश्विक राजनीति और आर्थिक मुद्दे नदारद रहते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस समूह में एक बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं होता है। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण गोलार्ध का कोई देश इस समूह का सदस्य नहीं है।