साल 2013 ठंड धीरे-धीरे लौटने की सड़क पर निकल चुकी थी। मार्च का महीना था ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत के दौरे पर बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी खेलने आई थी। चार मैच की टेस्ट सीरीज थी। दो टेस्ट जीतकर टीम इंडिया तीसरे मुकाबले के लिए मोहाली पहुंची और सीरीज के तीसरे टेस्ट में डेब्यू हुआ एक बाएं हाथ के सलामी बल्लेबाज का, जिसने रंगीन जर्सी में भारतीय टीम में डेब्यू तो तीन साल पहले ही कर लिया था, लेकिन उस वक्त खुद को साबित नहीं कर पाया था। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीसरे टेस्ट के प्लेइंग 11 में उसकी जगह इसलिए बनी, क्योंकि वीरेंद्र सहवाग का बल्ला लगातार रन नहीं बना पा रहा था। टीम की कमान संभाल रहे एमएस धोनी ने नए खिलाड़ी पर दांव लगाया और सहवाग को बेंच पर बिठाया।
उस खिलाड़ी ने अपने टेस्ट डेब्यू में ही जमकर खेला और गजब खेला। ताबड़तोड़ अंदाज में बल्लेबाजी की शतक जड़ा और इस पारी ने उसके के लिए टीम इंडिया के दरवाजे लंबे समय के लिए खोल दिए। अपने टेस्ट डेब्यू में 174 गेंदों पर 187 रन बनाने वाले इस खिलाड़ी का नाम है, शिखर धवन। धवन, वह बल्लेबाज जो किसी भी पेस अटैक को तहस-नहस करने का दम रखता है, धवन, वह बल्लेबाज जिसने 2013 की चैंपियंस ट्रॉफी में रनों का अंबार लगा दिया। धवन, वह बल्लेबाज जो तेजी से आती गेंद को क्रीज से आगे निकल लॉन्ग ऑफ और एक्स्ट्रा कवर के बीच से चार रन के लिए सरपट दौड़ा देता है। शिखर धवन का आज बर्थडे है।
गब्बर नाम की कहानी
शिखर धवन भारतीय टीम के उन ओपनर्स में से हैं, जिन्होंने शुरुआती ओवर में गेंदबाजों को खूब थकाया है। धवन को आईसीसी टूर्नामेंट्स बहुत रास आता है। चैंपिंयस ट्रॉफी 2013 में वह सबसे अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज थे। शिखर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि मैं रणजी ट्रॉफी खेल रहा था और सिली प्वॉइंट पर फील्डिंग कर रहा था। जब दूसरी टीम मैच के दौरान बड़ी पार्टनरशिप बना लेती है तो सब शांत हो जाते हैं, सभी उठाने के लिए बोलता था ‘सूअर के बच्चों’। अब अंपायर भी मुझे क्या बोले मैंने किसी को कुछ बुरा-भला तो नहीं बोला और फिर सब हंसना शुरु हो गए। इसके बाद मेरे कोच विजय दहिया ने मुझे गब्बर का नाम दिया। तब से ये नाम फेमस हो गया।
धवन ने 2010 में वन-डे डेब्यू करने के बाद 2011 जून तक केवल पांच ही मैच खेल पाए। इसके बाद उन्हें रंगीन जर्सी पहन खेलने का मौका मिला 2013 के आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में। इस बीत के अपने स्ट्रगल के बारे में धवन ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 2010 में एक दो मैच खेलने के बाद मैं बाहर हो गया था। मैने अपनी लाइफ में ऐसे कोई स्ट्रगल नहीं देखे क्योंकि मैं उसमें विश्वास नहीं रखता। 2010 से 2013 तक मैं अपनी क्रिकेट इंज्वॉय कर रहा था और मुझे क्रिकेट से प्यार है। रोज उठकर खेलने जाना और लड़कों के साथ मस्ती करना, अपनी बैटिंग पर काम करना, फिटनेस पर काम करना मैं वही लगातार करता रहा।
2013 में एमएस की कप्तानी में टीम इंडिया ने चैंपियंस ट्रॉफी जीता और इसमें धवन मैन ऑफ द सीरीज थे। धवन ने बताया कि मुझे पता था कि जब मेरा मौका आना हुआ तब आ जाएगा और नहीं भी आया तो कोई बात नहीं। इंज्वॉय करना बड़ा जरूरी है क्योंकि स्ट्रेस लेने से आपका आज भी नहीं सुधरेगा और ना ही कल सुधरेगा। धवन एक बार फिर से अपनी चोट और बल्लेबाजी को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। विश्व कप में उनका अंगुठा चोटिल हो गया था, इस चोट के बाद वह अपने गब्बर वाले रंग में नहीं लौट पाए हैं। उम्मीद है वह जल्द 22 गज की पट्टी पर वापसी करेंगे और शतक ठोक अपनी मूंछों पर ताव देंगे।