UP में रोहिंग्या मुस्लिमों पर सियासत तेज:अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बोले- रोहिंग्याओं की पहचान भाषाई आधार पर करना गलत

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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले रोहिंग्या घुसपैठियों के खिलाफ तेज हुआ एक्शन अब सियासी रंग लेने लगा है। दिल्ली बॉर्डर पर यूपी सरकार की जमीन पर अवैध रुप से बसे रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों पर कार्रवाई को लेकर योगी और केजरीवाल सरकार के बीच खींचतान जारी है। अब कांग्रेस भी यूपी में हो रही कार्रवाई को गलत ठहरा रही है। यूपी अल्पसंख्यक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि रोहिंग्याओ की पहचान भाषाई आधार पर की जा रही है, जो गलत है।

यूपी अल्पसंख्यक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम का कहना है कि बांग्लादेश से आए किसी भी मुसलमान के पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है, जिसके आधार पर उन्हें रोहिंग्या कहा जा सके। सुरक्षा एजेंसियां बंगला बोलने वालों को रोहिंग्या मानकर कार्रवाई कर रही है। उनका कहना है कि बांग्लादेश की सीमा से सटे पश्चिमी बंगाल के जिलों से बड़ी सख्या में मजदूर वर्ग पलायन करके यूपी में आया है। इनकी भाषा बांग्लादेशियों की तरह ही हैं। दोनों के पास भारतीय नागरिकता के प्रमाण पत्र और जहां बसे हैं, वहां के आधार और वोटर कार्ड हैं। ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि वह बांग्लादेश के रास्ते आए म्यांमार या वर्मा के रोहिंग्या मुसलमान हैं। सुरक्षा एजेंसियों की इस कार्रवाई से बंगलाभाषी नागरिकों पर एक तरह का दबाव बन रहा जो शायद सरकार का मकसद है।

आपराधिक गतिविधियों से अशांति फैलाने के मकसद से कर रहे घुसपैठ

आतंकवाद निरोधी दस्ता ATS ने इस साल जनवरी से अबतक 15 रोहिंग्या नागरिकों को गिरफ्तार किया है। इन सभी की सोने की तस्करी, मानव तस्करी और अन्य जघन्य अपराधों में संलिप्तता पाई गई है। ATS का दावा है कि अबतक पकड़े गए सभी रोहिंग्या देश मे रोहिंग्याओ को घुसपैठ करवाने के एजेंट हैं। जिनका मकसद देश मे आपराधिक गतिविधियां करके अशांति फैलाना है। हैदराबाद और हरियाणा के नूह में इनकी बड़ी आबादी है जो अब धीरे-धीरे यूपी की ओर बढ़ रही है। चुनाव में इनकी भागीदारी के लिए इन्हें कई संगठन संरक्षण भी दे रहे हैं।

सुरक्षा एजेंसियों के लिए बिना राष्ट्रीयता वाला आधार कार्ड बना मुसीबत

यूपी ATS प्रमुख जीके गोस्वामी का कहना है कि बांग्लादेशी या रोहिंग्याओ की पहचान करने में काफी मुश्किल आ रही है। प्रदेश के हर कोने में रहने वाले बांग्लादेशी परिवारों में रोहिंग्याओ की रिश्तेदारी है। यह इन्ही बंगलादेशी मजदूरों की बस्तियों में उन्ही के साथ रहते हैं। सभी के पास आधार कार्ड है जिससे वह खुद को यहाँ का नागरिक साबित करते हैं। उनका कहना है कि आधार कार्ड बनाने की प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत है। देश के नागरिकों और बाहर से आने वालों के लिए अलग-अलग आधार कार्ड जारी होने चाहिए जिस पर उनकी राष्ट्रीयता भी अंकित हो। इससे एक नजर में पता चल जाएगा कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन विदेश से आकर यहाँ रह रहा है।

UIDAI नही साझा करता किसी भी आधार कार्ड का डेटा

दिसम्बर 2017 में लखनऊ की एल्डिको ग्रीन कॉलोनी के एक मकान में डैकती पड़ी जिसमे परिवार के दो सदस्यों को डकैतों ने मरणासन्न कर दिया था। इसमें 9 बंगलादेशियों के नाम सामने आए जिसमें में 7 को गिरफ्तार किया गया था। छानबीन में सामने आया कि यह रोहिंग्या नागरिक हैं जो कई साल से बांग्लादेश और फिर वेस्ट बंगाल के 24 परगना में रह रहे थे। यह ठेके पर लूट और डकैती की वारदातों को अंजाम देने के लिए देश के किसी भी शहर में चले जाते थे।

वारदात की योजना के साथ ही लोकल स्तर पर इनके मददगार पकड़े जाने पर पहले से ही जमानत की व्यवस्था करवाकर रखते थे। इस इनपुट के बाद पुलिस ने लखनऊ की करीब 600 झोपड़पट्टियों में रहने वाले मजदूरों के बारे में नगर निगम से जानकारी मांगी तो उपलब्ध ही नही थी। नगर निगम और एलडीए एक दूसरे पर इन्हें बसाने की जिम्मेदारी थोपते रहे। इसके बाद पुलिस ने आधार कार्ड जारी करने वाले UIDAI से ब्यौरा मांगा तो इसे गोपनीय बताकर साझा करने से इनकार कर दिया गया। बावजूद इसके पुलिस ने कुछ बस्तियों में जाकर छानबीन शुरू की तो कई जनप्रतिनिधि विरोध में खड़े हो गए जिसके बाद अभियान ठंडे बस्ते में चला गया।