(www.arya-tv.com)जब से कोरोनावायरस के खिलाफ टीकाकरण शुरू हुआ है, तब से कोवीशील्ड सवालों के घेरे में रही है। कभी एफिकेसी रेट को लेकर सामने आए अलग-अलग आंकड़ों की वजह से तो कभी ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों में खून के थक्के जमने की वजह से इस्तेमाल पर रोक की वजह से।
16 जनवरी 2021 को भारत में कोरोनावायरस के खिलाफ वैक्सीनेशन शुरू हुआ तो गाइडलाइन साफ थी। कोवैक्सिन और कोवीशील्ड के दो डोज में 28 दिन यानी चार हफ्ते का अंतर रखना है। अधिक से अधिक 42 दिन यानी छह हफ्ते का अंतर चलेगा। पर इसके बाद कोवीशील्ड के दूसरे डोज को लेकर दो बार गाइडलाइन बदल चुकी है। पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने गाइडलाइन जारी की कि कोवीशील्ड के दो डोज में 12-16 हफ्ते यानी 3-4 महीने का अंतर रखना है।
नई गाइडलाइन नेशनल टेक्निकल एडवायजरी ग्रुप ऑफ इम्युनाइजेशन (NTAGI) की सिफारिश पर जारी हुई है। इसके दो फायदे हैं- 1. अधिक से अधिक लोगों को इन्फेक्शन से बचाने के लिए वैक्सीन का एक डोज दिया जा सकेगा, और 2. वैक्सीन की इफेक्टिवनेस भी बढ़ेगी। पर क्या दो डोज के बीच का अंतर इतना बढ़ाना आपके लिए सुरक्षित है? अगर आपको दो डोज 6 हफ्ते के भीतर लगे हैं तो क्या आपको चिंता होनी चाहिए? जानिए इसके पीछे छिपा विज्ञान क्या कहता है…
कोवीशील्ड या कोवैक्सिन के दो डोज लेना जरूरी क्यों है?
- जॉनसन एंड जॉनसन एवं स्पुतनिक लाइट वैक्सीन को छोड़कर सभी कोरोना वैक्सीन दो डोज वाली हैं। कोई वैक्सीन शरीर में इम्युनोजिक रेस्पॉन्स पैदा करे यानी आपके शरीर को वायरस से लड़ने लायक बनाए, इसके लिए जरूरी है कि निर्धारित समय पर दोनों डोज लिए जाएं।
- दो डोज वाली वैक्सीन में एक डोज शरीर के एंटीबॉडी रेस्पॉन्स को बढ़ाता है। वहीं दूसरा डोज उस एंटीबॉडी रेस्पॉन्स को मजबूती देता है। इस वजह से यह सलाह दी जाती है कि अगर एक डोज लेने के बाद भी व्यक्ति कोरोनावायरस से इन्फेक्ट हो जाता है तो भी वह दूसरा डोज लगाए। दोनों डोज लगने के बाद ही व्यक्ति को पूरी तरह से वैक्सीनेटेड या इम्युनाइज्ड (सुरक्षित) माना जा रहा है।
कोवीशील्ड के दो डोज का अंतर बढ़ाने के पीछे क्या विज्ञान है?
- गाइडलाइन में बदलाव कोवीशील्ड के संबंध में कई केस स्टडी और क्लिनिकल डेटा के आधार पर किया गया है। यह बताता है कि पहले डोज के कुछ हफ्तों बाद अगर दूसरा डोज लिया जाए तो वैक्सीन की इफेक्टिवनेस काफी बढ़ जाती है।
- शुरुआती सिफारिशों में कहा गया था कि कोवीशील्ड के दो डोज में 4-6 हफ्ते का अंतर रखा जाए। उसके बाद उसे बढ़ाकर 6-8 हफ्ते किया गया। हालांकि, क्लिनिकल रिसर्च बताती है कि अगर 8 हफ्ते से ज्यादा के अंतर से दो डोज दिए जाएं तो उसकी इफेक्टिवनेस 80%-90% हो जाती है।
- मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित स्टडी के अनुसार वैक्सीन की इफेक्टिवनेस और शरीर का इम्यून रेस्पॉन्स भी दोनों डोज की देरी से प्रभावित होता है। रिसर्चर्स को पता चला कि कोवीशील्ड के मामले में दो डोज में अंतर जितना अधिक, इफेक्टिवनेस भी उतनी ही अधिक होगी। जब 6 हफ्ते से कम अंतर से दो डोज दिए गए तो इफेक्टिवनेस 50-60% रही, जबकि अंतर बढ़ाकर 12-16 हफ्ते करने पर 81.3% रही।
क्या सिर्फ भारत में दो डोज का अंतर बढ़ाया गया है?
- नहीं। भारत से पहले ब्रिटेन और स्पेन में भी एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के दो डोज के बीच 12 हफ्ते का अंतर रखा गया है। वहां भी क्लिनिकल स्टडीज में जब अंतर बढ़ाने का रेस्पॉन्स अच्छा दिखा तो यह फैसला लिया गया।
- डॉक्टरों का भी कहना है कि अगर दो डोज के बीच का अंतर बढ़ाया जाता है तो कोरोनावायरस के खिलाफ iG एंटीबॉडी रेस्पॉन्स दोगुना तक हो सकता है।
अगर आपने कोवीशील्ड के दो डोज 6 हफ्ते से कम अंतर में लगाए हैं तो क्या होगा?
- घबराने की या चिंता करने की जरूरत नहीं है। खासकर बुजुर्गों के साथ-साथ हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स को 6 हफ्ते से कम अंतर से कोवीशील्ड के दो डोज लगाए गए हैं। इन लोगों को नई गाइडलाइन की वजह से चिंता नहीं करनी चाहिए। उनके शरीर में दो डोज के बाद एंटीबॉडी रेस्पॉन्स बना ही होगा।
- अगर आपको वैक्सीन के दोनों डोज लग चुके हैं तो आपकी इम्यूनिटी अच्छे स्तर पर होगी। आपके गंभीर बीमार होने या मौत की संभावना शून्य हो चुकी होगी। जिन्हें दोनों डोज लग चुके हैं, उन्हें इन्फेक्शन हो भी गया तो लक्षण बहुत हल्के या मामूली होंगे।
- अंतर सिर्फ इतना है कि 12-16 हफ्ते के अंतर से दो डोज लगाने वालों का एंटीबॉडी और इम्यून रेस्पॉन्स पहले से बेहतर होगा। यह अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीनेट करने के प्रयासों को गति देगा। याद रखिए, दोनों ही परिस्थिति में वैक्सीन बराबरी से इफेक्टिव है।