5G टेस्टिंग: रेडिएशन कितना ख़तरनाक और कोरोना वायरस पर इसका कितना असर !

Lucknow
Vishal Saxena

(www.arya-tv.com)आज की कवर स्टोरी पर होगी चर्चा कि कितना खतरनाक है 5G रेडिएशन और इस बात में कितना सच है कि 5G नेटवर्क से ही आई कोरोना की दूसरी लहर।

दोस्तों, आज का टॉपिक कुछ दूसरा होने वाला था पर दो रात पहले एक ऑडियो क्लिप आई, जिसमे बताया गया की 5G की टेस्टिंग से कोरोना की दूसरी लहर बहुत तेज़ी से फैल रही है; सोशल मीडिया पर भी इस तरह का एक मैसेज बहुत वायरल हुआ कि 5g टेस्टिंग बंद करो और इंसानों को बचाओ। तभी इस पर डिटेल्ड स्टोरी करने की सोची और आपके लिए लाए है एक एक्सक्लूसिव कवरेज, आइए जानते है इसका पूरा सच:

जैसा की आप सब जानते है कि भारत में फरवरी के बाद से 5G टेस्टिंग शुरू हो गई है और हमारे अपने राज्य उत्तर प्रदेश में भी 5G टैस्टिंग का कार्य चल रहा है। कई लोगो का मानना है कि 5g टेस्टिंग की वजह से ही कोरोना की दूसरी लहर आई है और इसकी वजह से ही लोग मर रहे है।

इसमें तर्क देने वाले कह रहे हैं कि इंडिया में ही यह इतना भयानक क्यों है और बाकी दूसरे देशों में इसका प्रभाव इतना भयानक क्यों नहीं। फरवरी के बाद ही कोरोना की दूसरी लहर स्टार्ट हुई और 5G नेटवर्क की टेस्टिंग भी शुरू हुई इसीलिए इन दोनो बातों को जोड़कर देखा जा रहा है। सोशल मीडिया की पोस्ट के अनुसार 5G टेस्टिंग से जो रेडिएशन निकलता है वो इतना खतरनाक है कि जब वो हवा में मिलता है तो वह हवा को जहरीला बना देता है और जब इंसान सांस लेता है तो वही ज़हरीली हवा उसके अंदर चली जाती है और उसको सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। साथ ही यह भी बताया गया कि रेडिएशन की वजह से लोगो को थोड़ा करेंट भी महसूस हो रहा है, गला सूख रहा है, प्यास ज्यादा लग रही है, यह सब दलीलें दी गई।

अब सवाल यह है कि 5G रेडिएशन की वजह से क्या देश में यह हाल है ?

अभी हाल ही में फैसला हुआ है और कुछ कंपनियों को 5G टेस्टिंग की मंजूरी दी गई है और इसकी वजह से ही यह सारे सवाल उठ रहे है।

WHO ने इस संदर्भ में कहा है कि 5G टेस्टिंग की वजह से कोई ऐसा रेडिएशन हवा को जहरीला नहीं बनाता जिसकी वजह से इंसान की जान जाए। इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण भी नहीं है कि 5G रेडिएशन की वजह से ही करोना की दूसरी लहर आई है। WHO ने अपनी वेबसाइट पर भी लिखा है और यह तर्क दिया है कोरोना वायरस रेडियो वेव या मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से ट्रैवल नहीं कर सकता। WHO ने यह भी कहा कि करोना कई ऐसे देशों में भी फैल रहा है जहां पर 5G है ही नही, ना उसकी टेस्टिंग, न उसका रेडिएशन। जब वहां 5G नहीं है, टेस्टिंग नहीं है, उसका रेडिएशन नहीं है तो फिर वहां पर कोरोना क्यों फैल रहा है, इसको बता कर WHO यह बताना चाहता है इस कोरोना की लहर का 5G रेडिएशन से कोई लेना देना नहीं है।

हाल में ही एक फिल्म आई थी रोबोट 2, जिसमे अक्षय कुमार पक्षी बने थे और दिखाया गया था कि रेडिएशन से कैसे पक्षियों पर असर हुआ और उनकी मौतें हो रही है। मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगों की frequency और speed होती है और यह कितनी खतरनाक है इंसानों के लिए, इस पर आज भी बहस चल रही है। पर अभी तक की जो साइंटिफिक खोज है उसके अनुसार मोबाइल टावर के रेडिएशन से पक्षियों की मौत की कोई पुष्टि नहीं हुई है। उनका कहना है कि जो मोबाइल टॉवर एंटीना है उसका इतना हाई लेवल नहीं है कि वह किसी भी पक्षी या किसी इंसान को मार सके और इस तरह की कोई भी रिपोर्ट सामने नहीं आई है दुनिया की किसी भी जगह से, जहां इन मोबाइल टावर की वजह से पक्षियों की जान गई हो।

तो यह theory गलत है, कि 5G टेस्टिंग की वजह से करोना की दूसरी लहर आई है ऐसा कुछ भी scitifically प्रूव नहीं हुआ है।

पर एक बात बिलकुल सही है, रेडिएशन कोई भी हो यदि आप उसके संपर्क में एक सीमा से ज्यादा रहते है तो वह आपकी सेहत पर बुरा प्रभाव डालती है, AIMS के डायरेक्टर डा. गुलेरिया ने कहा कि लोग जरा जरा सी बात पर, कुछ भी होता है थोड़े शक के बिनाह पर CT Scan करवाते है जो बहुत ही नुकसानदायक है, ज्यादा CT Scan करवाने से कैंसर होने का खतरा होता है। उन्होंने बताया कि एक CT Scan का मतलब होता है 300 बार X-Ray करवाना। इससे गामा रेडिएशन निकलता है जो कैंसर फैला सकता है।

रेडिएशन को दो भागों में बाटा गया है एक Ionizing और दूसरा Non Ionizing.

Ionizing रेडिएशन वो होता है जिसकी तरंगों की स्पीड बहुत ज्यादा होती है जैसे कि Ultra Violet rays, Xrays, Gamma rays यह शरीर को नुकसान पहुंचाती हैं। इसी वजह से कहा जाता है कि एक्स-रे ज्यादा ना कराएं, सीटी स्कैन ज्यादा ना कराएं और सूरज की रोशनी में ज्यादा देर ना बैठे हैं क्योंकि Ultravoilet rays भी आपके शरीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
Non Ionizing रेडिएशन वो होता है जिसकी तरंगों स्पीड कम होती है इसमें इतनी ताकत नहीं होती कि शरीर के साथ कोई रिएक्शन कर सके। जैसे कि रेडियो सिग्नल: मीडियम वेव फ्रीक्वेंसी, टीवी सिग्नल में भी इस तरह की तरंगों का इस्तेमाल होता है। मोबाइल नेटवर्क्स में भी Non Ionizing rediation; electromagnetic radio वेव का ही इस्तेमाल होता है।

TRAI के नियमो के अनुसार मोबाइल टावर की frequency को निर्धारित किया गया है पर कई बार सिग्नल कम होने की वजह से कुछ कंपनियां फ्रीक्वेंसी को तय लिमिट से ज्यादा बढ़ा देती हैं जो की नुकसान देय है। देखा जाए तो कंपनियों को एक नया टावर लगाना चाहिए जहां सिग्नल्स कम हो पर यह एक खर्चीला काम है, इसलिए नुकसान से बचने के लिए कंपनियां ऐसा करती है जोकि गलत है। इस तरह के मुद्दे पहले भी कई बार उठ चुके है।

कुल मिला कर, अगर आप सोशल मीडिया पर इस तरह के पोस्ट देखे कि 5G टेस्टिंग की वजह से कोरोना तेज़ी से फैल रहा है तो यह सब बकवास है, साइंटिफिक तौर पर यह कहीं पर प्रूफ नहीं हुआ है।

विशाल सक्सेना विशेष संवाददाता की स्पेशल रिर्पोट