हम कोरोना के डर से नहीं, बल्कि भूखे मर जाने के डर से गए थे और अब लौटे भी भूख की वजह से

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(www.arya-tv.com) महीनों सुनसान रहने के बाद लाजपत नगर के ऑटो स्टैंड में फिर हलचल दिखने लगी है। सवारियों के इंतजार में खड़े हरे-पीले ऑटो की कतारें एक बार फिर से यहां सजने लगी हैं। अमूमन 15-20 किलोमीटर का फेरा लगाकर लौट आने वाले ये ऑटो इस बार करीब तीन हजार किलोमीटर का फेरा लगाकर यहां लौट रहे हैं।

इस स्टैंड के लगभग सभी ऑटो चालक मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं। मार्च में जब कोरोना के चलते देश भर में लॉकडाउन शुरू हुआ तो एक-एक करके ये सभी ऑटो चालक अपने ऑटो लेकर बिहार चले गए थे। अपने जीवन का सबसे लंबा ऑटो का सफर तय करने के बाद ये लोग अब वापस दिल्ली लौट तो रहे हैं, लेकिन इनकी परेशानियां अभी कम नहीं हुई हैं।

बीते 15 साल से दिल्ली में ऑटो चला रहे शेख मांगन कहते हैं, ‘मैंने पिछले साल ही नया ऑटो खरीदा था। 70 हजार रुपए नकद दिए थे और बाकी साढ़े 14 हजार रुपए प्रति माह की किस्त बंधवा ली थी। चार किस्त ही चुकाई थीं कि लॉकडाउन हो गया। अब पिछले पांच महीनों से किस्त नहीं दे पाया हूं। जिस एजेंसी से ऑटो लिया था, वो लोग अब ब्याज सहित किस्त मांग रहे हैं। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि अपना ऑटो बचा पाऊंगा।’

मांगन जैसे ही हालात उन ऑटो चालकों के हैं, जो बिहार से वापस दिल्ली लौट रहे हैं। 36 साल के सुनील कुमार बताते हैं, ‘लोग अब भी घरों से निकलने में घबरा रहे हैं। काम उतना नहीं है, जितना लॉकडाउन से पहले होता था। पहले हम लोग दिन में 12-13 सौ का काम कर लेते थे। अभी एक दिन में मुश्किल से चार सौ का भी काम नहीं हो रहा। ऐसे में क्या खाएं, क्या बचाएं, कैसे किस्त चुकाएं और कैसे घर पैसे भेजें?’

ये तमाम लोग ऐसे समय में दिल्ली लौट रहे हैं, जब देश में कोरोना के नए मामले लगातार बढ़ रहे हैं। गांव का सुरक्षित माहौल छोड़कर दिल्ली लौटते हुए संक्रमण का डर नहीं लगता, यह सवाल पूछने पर सुनील कहते हैं, ‘कोरोना या किसी भी बीमारी का डर तभी लगता है जब पेट भरा हुआ हो। भूखे पेट रहने से बड़ा डर कुछ नहीं होता। हम दिल्ली से गए थे तो भी कोरोना के डर से नहीं, बल्कि भूखे मर जाने के डर से ही गए थे और अब लौटे भी भूख के ही कारण हैं।’

लॉकडाउन के दौरान महानगरों से अपने-अपने गांवों को लौटे कई प्रवासी कामगार अब वहीं आजीविका के विकल्प तलाशने लगे हैं और महानगरों की ओर लौटना नहीं चाहते। लेकिन, दिल्ली में ऑटो चलाने वाले इन लोगों के पास यह विकल्प नहीं है। बिहार के कटिहार के रहने वाले मोहम्मद निजाम कहते हैं, ‘वापस लौटना हमारी मजबूरी थी। ये ऑटो लोन पर लिया है। लौटते नहीं तो किस्त कैसे चुकाते।’