CAA प्रोटेस्ट की बन गया है पहचान, शाहीन बाग को कैसे मिला नाम

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(www.arya-tv.c0m) नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में जाड़े की सर्द रातों में महिलाएं, बच्चे और बूढ़ी औरतें बीच सड़क पर खुले आसमान के नीचे धरने पर बैठी ​हुई है।

पिछले 38 दिनों से ये महिलाएं मुट्ठी भींचे इंकलाब और हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे बुलंद कर करते नजर आ रही थी। सीएए-एनआरसी के खिलाफ शाहीन बाग का प्रोटेस्ट एक मॉडल बन गया है और इस आंदोलन की चिंगारी देश भर में फैल गई है।

शाहीन बाग की तर्ज पर देश के दो दर्जन से ज्यादा शहरों में सीएए-एनआरसी के खिलाफ महिलाओं और बच्चों ने मोर्चा खोल दिया है।

15 दिसंबर से शुरू हुआ यह आंदोलन कम होने की बजाय बढ़ता जा रहा हालांकि एक दौर था कि शाहीन बाग से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर भी इस इलाके के नाम को कोई नहीं जानता था और आज देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। ऐसे में हम बताते हैं कि शाहीन बाग इलाके का नाम कब और कैसे वजूद में आया है।

इसके बाद सलीम खान ने अल्लामा इकबाल के ही शेर ‘नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर, तू शाहीन है बसेरा कर पहाड़ों की चट्टानों पर.’ से शाहीन शब्द को लिया. शाहीन का मतलब बाज की तरह का एक पक्षी होता है जो पहाड़ों पर ठहरता है। इस तरह से इस इलाके का नाम शाहीन बाग पड़ा. हालांकि, राजस्व विभाग में आज भी यह इलाका अबुफजल पार्ट-2 के नाम से दर्ज है।