4 दिसंबर को भारतीय नौसेना दिवस (Indian Navy Day) के रूप में मनाया जाता है। आज इस मौके पर नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (National War Memorial) पर श्रद्धांजलि दी।
लेकिन क्या आप जानते हैं की नौसेना दिवस 4 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है, क्या ये प्रश्न आपके मन में कभी आया है? क्या आप जानते हैं कि NAVY का फुल फॉर्म क्या है? क्या आप जानते हैं कि हमारी नौसेना आजादी से सैंकड़ों साल पहले बनी थी, तब इसे किसी और नाम से जाना जाता था? तो इन सभी सवालों के जवाब हम आपको बताने जा रहे हैं।
4 दिसंबर को ही नौसेना दिवस क्यों मनाया जाता है?
साल 1971 में आज ही के दिन भारत-पाक युद्ध के दौरान नौसेना ने पाकिस्तान के कराची बंदरगाह को बर्बाद कर दिया था। भारतीय नौसेना की जीत के जश्न के रूप आज के दिन नौसेना दिवस मनाया जाता है। असल में यह पाकिस्तान द्वारा की गई कार्यावाही का जवाब था। इस कार्यवाही को ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ (Operation Trident) के नाम से भी जाना जाता है। भारत ने इस हमले से पाकिस्तानी नौसेना के कराची स्थित मुख्यालय को निशाना बनाया था। यह हमला इतना जबरदस्त था कि कराची बंदरगाह पूरी तरह बर्बाद हो गया था और इससे लगी आग सात दिनों तक जलती रही थी।
4 दिसंबर को ही नौसेना दिवस क्यों मनाया जाता है?
साल 1971 में आज ही के दिन भारत-पाक युद्ध के दौरान नौसेना ने पाकिस्तान के कराची बंदरगाह को बर्बाद कर दिया था। भारतीय नौसेना की जीत के जश्न के रूप आज के दिन नौसेना दिवस मनाया जाता है। असल में यह पाकिस्तान द्वारा की गई कार्यावाही का जवाब था। इस कार्यवाही को ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’ (Operation Trident) के नाम से भी जाना जाता है। भारत ने इस हमले से पाकिस्तानी नौसेना के कराची स्थित मुख्यालय को निशाना बनाया था। यह हमला इतना जबरदस्त था कि कराची बंदरगाह पूरी तरह बर्बाद हो गया था और इससे लगी आग सात दिनों तक जलती रही थी।
ये कैम्बे की खाड़ी और ताप्ती और नर्मदा के मुहाने पर ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार था।
बॉम्बे अंग्रेजों को साल 1662 में सौंप दिया गया था। पर उन्होंने साल 1665 में आधिकारिक तौर से इस पर अधिकार स्थापित किया। इसके बाद 20 सितंबर 1668 को ईस्ट इंडिया कंपनी मरीन को बॉम्बे के व्यापार की देखभाल की जिम्मेदारी भी दे दी गई।
साल 1686 तक ब्रिटिश व्यापार पूरी तरह से बॉम्बे में स्थानांतरित हो गया। इसके बाद इस दस्ते का नाम ईस्ट इंडिया मरीन से बदलकर बॉम्बे मरीन (Bombay Marine) कर दिया गया।
भारतीय नौसेना को कब मिला ये नाम
बॉम्बे मरीन ने मराठा, सिंधि युद्ध के साथ-साथ साल 1824 में बर्मा युद्ध में भी हिस्सा लिया।
साल 1830 में बॉम्बे मरीन का नाम बदलकर महामहिम भारतीय नौसेना रखा गया।
ब्रिटिश द्वारा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस फ्लोटिला और अदन पर कब्जा करने के साथ ही नौसेना की प्रतिबद्धता कई गुना बढ़ गई, जिसके बाद साल 1840 में चीन युद्ध में इसकी तैनाती इसकी दक्षता के लिए पर्याप्त गवाही देती है।
नौसेना में कमीशन पाने वाला पहला भारतीय
साल 1863 से 1877 तक इसका नाम बदलकर फिर से बॉम्बे मरीन कर दिया गया और साल 1877 में ये फिर महामहिम इंडियन मरीन कर दिया गया।
जिसके बाद साल 1892 में इसे रॉयल इंडियन मरीन (Royal Indian Marine) कर दिया गया। उस समय तक इसमें 50 से अधिक पोत शामिल हो गए थे।
प्रथम विश्व युद्ध में जब बॉम्बे और अदन को खदानों के बारे में जानकारी मिली तो रॉयल इंडियन मरीन इस दौरान खदानों, गश्ती जहाजों और टुकड़ी वाहकों के एक बेड़े के साथ कार्रवाई में चला गया। इसका उपयोग मुख्य रूप से गश्त लगाने, सैनिकों को फेरी लगाने और युद्ध के भंडार को इराक, मिस्र और पुर्व अफ्रीका तक पहुंचान में किया जाता था।
पहला भारतीय जिसे रॉयल इंडियन मरीन में कमीशन दिया गया था, वह थे लेफ्टिनेंट डीएन मुखर्जी। वह 1928 में एक इंजीनियर अधिकारी के रूप में रॉयल इंडियन मरीन में शामिल हुए।
साल 1934 में, रॉयल इंडियन मरीन को रॉयल इंडियन नेवी (Royal Indian Navy) के रूप में संगठित किया गया। दूसरे विश्व युद्ध की शुरूआत में रॉयल इंडियन नेवी में आठ युद्धपोत थे। युद्ध के अंत तक इसकी क्षमता कई गुना बढ़ गई। अब तक रॉयल इंडियन नेवी में 117 लड़ाकू जहाज और 30,000 कर्मचारी शामिल को चुके थे।
आजादी के समय भारत के पास रॉयल इंडियन नेवी के नाम पर केवल तटीय गश्त के लिए उपयोगी 32 बूढ़े जहाज और 11,000 अधिकारी और कर्मी बचे थे।
26 जनवरी 1950 को भारत को एक गंणतंत्र के रूप में गणित किया गया, जिसके बाद उपसर्ग ‘रॉयल’ को हटा दिया गया।
भारतीय नौसेना के पहले कमांडर-इन-चीफ एड्म सर एडवर्ड पैरी, केसीबी थे, जिन्होंने साल 1951 में अपना कार्यभार एडम सर मार्क पिज़े, केबीई, सीबी, डीएसओ को सौंप दिया था।
NAVY का पूरा नाम
N- नॉटिकल
A- आर्मी ऑफ
V- वॉलेंटीयर
Y- योमेन
Nautical Army of Volunteer Yeoman