(www.arya-tv.com) म्यूजिक के शहंशाह एआर रहमान का 6 जनवरी को 57वां बर्थडे है। इस मौके पर जानिए उनकी जिंदगी की उस दर्दनाक घटना के बारे में, जिसने सबकुछ बदलकर रख दिया। एआर रहमान ने बताया था कि कैसे उनका बचपन बिल्कुल भी सामान्य नहीं रहा।सामने चिता पर पिता और 9 साल के एआर रहमान।
जब मुश्किल वक्त आता है, तो अच्छे-अच्छों की हिम्मत टूट जाती है। बहुत ही कम लोग ऐसे होंगे, जिन्होंने मुश्किलों के बड़े से बड़े तूफान को झेलकर अपनी किस्मत लिखी होगी। ऐसे ही कम लोगों में नाम आता है एआर रहमान का, जिनका बचपन का नाम एएस दिलीप कुमार था।
6 जनवरी को 57वां बर्थडे मना रहे एआर रहमान की दुनियाभर में तूती बोलती है। म्यूजिक की दुनिया के सम्राट कहे जाने वाले एआर रहमान ने अपने करियर में छह नेशनल अवॉर्ड, दो ऑस्कर और बाफ्टा अवॉर्ड से लेकर गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड और पद्म भूषण जैसे सम्मान पाए।
लेकिन आज जिस मुकाम पर एआर रहमान हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने बहुत तकलीफें उठाईं। जिंदगी का ऐसा खौफनाक दौर देखा, जो आज भी उनका पीछा नहीं छोड़ता। वह खौफनाक दौर बचपन में ही शुरू हो गया था।पिता की मौत के बाद बुरा हाल, बुरे दिन शुरू।
एआर रहमान आज भी उस दिन को नहीं भूलते, जब आंखों के सामने पिता का पार्थिव शरीर था, और उन्होंने उनकी चिता को अग्नि दी। तब वह 9 साल के थे। पिता के जाने के बाद से ही एआर रहमान और उनके पिता के बुरे दिन शुरू हो गए थे। खाने के भी लाले पड़ गए थेमलयालम सिनेमा की शान थे एआर रहमान के पिता।
एआर रहमान के पिता का नाम राजगोपाल कुलशेखरन यानी आरके शेखर था। वह जाने-माने म्यूजिक कंपोजर थे और मलयालम सिनेमा में काम करते थे। अपने करियर में उन्होंने 127 गाने कंपोज किए और 52 फिल्मों में म्यूजिक दिया था। अस्पतालों में बीता एआर रहमान का बचपन।
एआर रहमान ने एक इंटरव्यू में अपनी जिंदगी के उस खौफनाक वक्त की कहानी बताई थी। एआर रहमान ने कहा था कि उनका बचपन बिल्कुल भी सामान्य नहीं रहा। पिता बीमार रहते थे, और इस कारण वह ज्यादातर अस्पतालों में ही रहे। उनके पिता करीब 4 साल तक बुरी तरह बीमार रहे, और फिर एक दिन चल बसे।पिता की चिता को दी आग, तब चौथी क्लास में थे एआर रहमान।
उस दिन को याद कर एआर रहमान आज भी सिहर उठते हैं। उन्होंने बताया था, ‘मैंने उनका दाह-संस्कार किया था। उनकी चिता को अग्नि दी थी। तब मैं 9 साल का था और चौथी क्लास में पढ़ता था। एक यही याद है, जो मेरे दिमाग से कभी जाती नहीं है।
यह मुझे अब भी परेशान करती है, पीछा नहीं छोड़ती। लेकिन, इसकी वजह से मुझे जिंदगी को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिली है। इसने मुझे वह सब दिया, जो एक सामान्य बच्चे को नहीं मिलता।’परिवार के लिए स्कूल छोड़ा, किराए से पेट भरा।
पिता की मौत के बाद घर-परिवार की सारी जिम्मेदारी एआर रहमान के कंधों पर आ गई और उनका स्कूल भी छूट गया। घर में कोई कमाने वाला नहीं था। गुजारा कैसे चलता? इसलिए एआर रहमान को स्कूल छोड़ना पड़ा। वह फिर परिवार की मदद करने लगे। कमाई के लिए एआर रहमान ने पिता के म्यूजिकल इक्विपमेंट को किराए पर देना शुरू कर दिया। पिता के दोस्त ने की मदद, 50 रुपये थी पहली सैलरी
चूंकि एआर रहमान को संगीत विरासत में मिला था, तो इसके प्रति उनका रुझान बचपन से ही हो गया था। म्यूजिक कंपोजर एमके अर्जुनन ने उनके करियर में मदद की। वह रहमान के पिता के दोस्त थे, और उनके साथ काम भी करते थे।
एआर रहमान ने जब करियर शुरू किया, तो पहली सैलरी 50 रुपये मिली थी। धीरे-धीरे वह सेशन म्यूजिशियन बने और फिर कीबोर्ड प्लेयर। इसके बाद वह टीवी के लिए जिंगल्स बनाने लगेऐसे चमकी थी एआर रहमान की किस्मत।
एआर रहमान की किस्मत तब खुली, जब उन्होंने फिल्म ‘रोज़ा’ से पहला ऑफर मिला। इस फिल्म का म्यूजिक एआर रहमान ने ही दिया था। फिल्म ने तीन नेशनल अवॉर्ड जीते थे और एआर रहमान के म्यूजिक की भी खूब तारीफ हुई थी। इसके गाने आज भी कानों में रस घोल देते हैं।