(www.arya-tv.com) भारत के पड़ोसी देश चीन में एक बार फिर हाहाकार मचा हुआ है. यहां रहस्यमयी निमोनिया कहे जा रहे इन्फ्लूएंजा ए वायरस के सब-टाइप एच9एन2 का कहर देखने को मिल रहा है. कई अन्य देशों में भी इस वायरस के केसेज सामने आ रहे हैं. इसकी चपेट में कोविड-19 महामारी से किसी तरह बचे रह गए छोटे बच्चे आ रहे हैं, ऐसे में चीन से आए कोरोना को झेलने के बाद भारत में इस बीमारी के संक्रमण लेकर भी खतरे की संभावना जताई जा रही है लेकिन क्या सचमुच अब भारत के बच्चों पर खतरा मंडरा रहा है? क्या यह बीमारी चीन के बाद अन्य देशों और अब भारत में फैलने जा रही है? आइए जानते हैं क्या कहते हैं देश के हेल्थ एक्सपर्ट…
नई दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के पूर्व निदेशक और जाने माने सर्जन डॉ. एमसी मिश्र कहते हैं कि कोरोना के बाद यह बात समझ में आ चुकी है कि कोई भी वायरल इन्फेक्शन या वायरस का फैलाव रोकना मुश्किल है. इसकी बाउंड्रीज नहीं होती. अगर यह एक देश में फैला है तो इसे दूसरे देशों में फैलने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि अब साधनों के चलते देशों के बीच दूरी कम हो गई है, वहीं इंटरनेशनल ट्रैवल भी बहुत ज्यादा बढ़ गया है.
चीन में लगातार बढ़ रहे केस
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली में पल्मोनरी क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन के एचओडी प्रो. अनंत मोहन कहते हैं कि चीन के एक हिस्से में इस निमोनिया के मामलों में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. ऐसा क्यों हो रहा है, इसका कारण अभी पता नहीं है लेकिन यह कोई नया बग या वायरस नहीं है. यह पहले से मौजूद है और इसके केसेज पहले भी आते रहे हैं.
क्या भारत में बच्चों पर खतरे की घंटी?
इस बारे में डॉ. मिश्र कहते हैं कि एक चीज जो इन मामलों में देखी जा रही है वह यह है कि चीन में निमोनिया के अधिकांश मामलों में बच्चे मरीज हैं. वहां बड़ों में इसका संक्रमण नहीं देखने को मिल रहा है. ऐसे में जहां तक भारत में बच्चों पर खतरे का सवाल है तो यहां पैनिक की जरूरत नहीं है और इस वायरस के खराब प्रभाव की आशंका भी कम है. इसकी तीन वजहें हैं…
.पहला है कि जो भी इन्फ्लूएंजा ए वायरस का सब टाइप H9N2 के केस चीन में आ रहे हैं, इसमें देखा जा रहा है कि संक्रमण दर तो हाई है लेकिन मृत्यु दर काफी कम है. इससे बच्चों में इन्फेक्शन जल्दी हो रहा है लेकिन फिर वे ठीक हो रहे हैं. लिहाजा अगर यह भारत में आता भी है तो इस बीमारी का इलाज संभव हो सकेगा.. दूसरा है कि भारत में बच्चे इंटरनेशनल ट्रैवल इतना ज्यादा नहीं करते. इसलिए बच्चों में इसका एक्सपोजर कम होने की आशा है. कोविड में देखा गया कि लोग ट्रैवलिंग के माध्यम से इस रोग की चपेट में आए और यह वायरस हर जगह फैल गया. यह ज्यादा संक्रामक भी था.
तीसरा है कि बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक पाई जाती है और भारत में इन्फ्लूएंजा फ्लू फैमिली के वायरसों से बच्चे संक्रमित होते रहते हैं, जिससे उनकी इम्यूनिटी हल्के इन्फेक्शंस के लिए तैयार रहती है. कोविड में भी बच्चे बहुत प्रभावित नहीं हुए थे, ऐसे में इस बार भी इसकी संभावना कम है.
डॉ. मिश्र कहते हैं, हालांकि फिर भी बचाव के उपाय करते रहने होंगे. कोविड वाला व्यवहार अगर अपनाते हैं तो उसमें घाटा नहीं है, फायदा ही है. ताकि चीन में जो स्थिति है वह भारत में न हो.
बाकी देशों में उठ रही ये मांग
बता दें कि चीन में फैले रहस्यमयी निमोनिया जैसे कुछ मामले बाकी देशों में भी दिखने लगे हैं. डेनमार्क और नीदरलेंड में भी ऐसे संक्रमण के मामले देखे जा रहे हैं. डेनमार्क के स्टेटेंस सीरम इंस्टीट्यूट का कहना है कि केसेज की संख्या को देखते हुए इसे महामारी कह सकते हैं. वैश्विक खबरों के मुताबिक यूरोप, अमेरिका, स्विटजरलैंड और स्वीडन भी कुछ मामले देखे जा रहे हैं. इन देशों का आरोप है कि चीन इस बीमारी के बारे में सही डाटा उपलब्ध नहीं करा रहा है.