(www.arya-tv.com) द्विदिवसीय ‘कालजयी’ कुमार गंधर्व संगीत समारोह के अंतर्गत काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शताब्दी कृषि सभागार में कार्यक्रम के द्वितीय दिवस का प्रारंभ परिचर्चा सत्र के साथ किया गया, जिसमें कुमार गंधर्व के सांगीतिक अवदानों तथा उनकी संगीतपरक प्रयोगशैली के साथ संगीत की निर्गुण दार्शनिक परंपराएं तथा कुमार जी के जीवन से जुड़े कुछ अनछुए पहलुओं पर पद्मश्री मधुप मुद्गल, डॉ. कृष्णकांत शुक्ल, विदुषी कलापिनी कोमकली तथा भुवनेश कोमकली जी ने अपने संस्मरणों को साझा किया।
इस परिचर्चा सत्र की अध्यक्षता कर रहे पद्मश्री आचार्य राजेश्वर आचार्य ने कुमार गंधर्व को विलक्षण प्रतिभा से संपन्न तथा स्वानुभूत आह्लाद से ओतप्रोत अभूतपूर्व संगीतज्ञ तथा गायक के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने कुमार गंधर्व की इस विधा को आगे संवर्धित करने के लिए अनुसंधानों तथा शैक्षिक पाठ्यक्रमों के निर्माण पर भी जोर दिया। परिचर्चा सत्र का संचालन कवि एवं संस्कृतिकर्मी व्योमेश शुक्ल ने किया।
बनारस में बिताए गए जीवनकाल के सुंदर प्रसंगों का चित्रण
द्वितीय परिचर्चा सत्र में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संगीत एवं मंच कला संकाय से प्रो. स्वरवंदना शर्मा, प्रो. संगीता पंडित तथा डॉ. रामशंकर सिंह ने कालजयी कुमार गंधर्व जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विशद चर्चा करते हुए उनकी बनारस में बिताए गए जीवनकाल के सुंदर प्रसंगों का चित्रण किया।
इस परिचर्चा सत्र के मुख्य अतिथि संकाय प्रमुख प्रो. के. शशिकुमार ने कुमार जी की गायकी की अलौकिकता वर्णन किया। सत्र का संचालन करते हुए डॉ. के. अंबरीश चंचल ने कुमार के अनेक प्रसंगों को उद्धृत किया।
भक्तिपदों को सुनकर उपस्थित श्रोतागण आनंद से आप्लावित
कार्यक्रम के सायंकालीन सत्र में सांगीतिक प्रस्तुतियों में प्रथम प्रस्तुति देते हुए भारतरत्न पं. भीमसेन जोशी के सुपुत्र श्रीनिवास भीमसेन जोशी और सुपौत्र विराज श्रीनिवास जोशी के द्वारा वाराणसी की अपनी प्रथम प्रस्तुति के रूप में गाए गए वारकरी संप्रदाय के भजन ‘जय राम कृष्ण हरि’ से आरम्भ करते हुए, कबीर के “गुरु बिन कौन बतावे” तथा तुलसीदास जी के “रघुबर तुमको मिलने” आदि भक्तिपदों को सुनकर उपस्थित श्रोतागण आनंद से आप्लावित हो उठे।